मुस्लिमों के बीच भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से लगातार बैचैनी देखने को मिल रही है जिसके चलते मुस्लिम समाज अपने रहबर की तलाश में कभी इधर तो कभी उधर भटकता हुआ महसूस हो रहा है इतना ही नहीं बैचैनी तो छोटे से छोटे नेता से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करने वाले मुस्लिम लीडर भी पार्टियों की अदला बदली लगातार कर रहे हैं। दरअसल इस बैचैनी की वजह हर कोई जानता है और वो यह है कि मुस्लिम समुदाय और इस समाज के नेता भाजपा सरकार के वजूद में आने से असहज स्थिति में है।
यहां तक कि मौजूदा सरकार में सिर्फ समुदाय विशेष ही नहीं बल्कि सत्ता दल के वोटर और समर्थक भी बैचैनी की हालत में हैं क्योंकि सुनवाई के नाम पर अधिकारियों की मनमानी अधिक सुनी देखी जा रही है जबकि जनता खुद को केवल कानून के डंडे के नीचे असहाय महसूस करती है।
मुस्लिम चेहरे पटल से लगभग हाशिए पर पहुंच चुके हैं यहां तक कि किसी सरकारी नीति अथवा कार्यवाही का लोकतांत्रिक अधिकार के रूप में विरोध करना हो तब भी नेता मौन अवस्था में नज़र आते हैं अथवा खानापूर्ति करते दिखाई देते हैं ऐसे में अगर कोई शख्स इस वक्त में भी आगे बढ़कर जनता की बात को आगे पहुंचाने का साहस कर रहा है या फिर अपनी बात को बेधड़क होकर सामने रखता है तो उस नेता की तरफ जनता का रुझान होना स्वाभाविक ही है और फिलहाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इमरान मसूद के अलावा कोई हिम्मत नहीं कर पा रहा है कि सरकार के खिलाफ लोकतांत्रिक आवाज़ को बुलंद कर सके।
अभी बीते दिनों जब पूरे देश में समुदाय विशेष द्वारा विवादित बयान के चलते एक भाजपा नेत्री का विरोध किया जा रहा था उस समय सहारनपुर में भी बिना किसी नेतृत्व अथवा राजनीतिक सामाजिक संगठनों के बुलावे के कुछ युवाओं द्वारा अचानक शहर में विरोध स्वरूप भीड़ एकत्र कर ली थी जिसपर कानूनी कार्यवाही शुरू हुई तो यह भी चर्चा में आया कि पुलिस कुछ बेगुनाहों को भी उठाकर कार्यवाही कर रही है उस समय सहारनपुर की जनता ने स्पष्ट देखा कि बेगुनाहों के खिलाफ पुलिसिया कार्यवाही के विरोध में विभिन्न दलों के जनप्रतिनिधियों ने मिलकर प्रशासन को अपना ज्ञापन देकर खानापूर्ति की जबकि इमरान मसूद ने बेगुनाह युवाओं की प्रशासन के समक्ष मजबूत पैरवी की तथा मीडिया के समक्ष भी बेखौफ बयान दिया जिससे पुलिस ने अपनी कार्यवाही में सुधार करते हुए बेगुनाहों पर से अपनी कार्यवाही को पीछे हटाया और उन्हें ज़मानत मिल सकी। यही वह समय था जब जनता यह सोचने पर मजबूर हुई कि हमारी पैरवी कौन कर सकता है तथा इमरान मसूद को जनप्रतिनिधि न बनाकर जनता ने नुकसान ही उठाया है।
निश्चित ही राजनीति व्यवसाय नहीं है लेकिन राजनीतिज्ञ का पेशेवर राजनीतिज्ञ होना आवश्यक है और वर्तमान में पूर्व केंद्रीय मंत्री और 9 बार के सांसद स्वर्गीय काज़ी रशीद मसूद के परिवार के सिवाय कोई अन्य विकल्प जनता के पास नहीं है जो विकल्प बनाए भी गए वो उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके।
इमरान मसूद के कदम पर टिकी जिले की राजनीति
इमरान मसूद खेमे से चर्चा छन छन कर बाहर आती सुनाई पड़ रही है कि अब जल्दी ही कोई बड़ा फैसला लिया जाएगा जबकि सोशल मीडिया पर इमरान मसूद का साथियों सहित बसपा में जाना तय बताया जा रहा है हालांकि इमरान मसूद ने खुद या काज़ी परिवार के किसी सदस्य ने अभी तक इस विषय में कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन अगर ऐसा होता है तो निश्चित ही सहारनपुर के राजनीतिक समीकरण जो कि पहले से ही बसपा के पक्ष में चले आते रहे हैं और अधिक मज़बूत हो जाएंगे। बल्कि अगर यह कहा जाए कि इमरान की बसपा में एंट्री बसपा के पक्ष में चलने वाले समीकरणों पर जीत की मुहर बनकर पड़ेगी तो यह ग़लत नहीं होगा।
जनता बदलाव चाहती है और लंबे समय तक इमरान मसूद को जनप्रतिनिधित्व से दूर रखकर जनता ने अलग अलग चेहरों को अपना प्रतिनिधित्व सौंपकर देखा लेकिन हर मौके पर केवल इमरान मसूद ही जनता के लिए आगे बढ़कर आए जबकि चुने हुए प्रतिनिधि अकेले कोई फैसला या विरोध का हौंसला तक न जुटा सके। जनता फिर से बदलाव चाहती है अगर सोशल मीडिया के योद्धाओं से अलग जनता की नब्ज़ टटोलने की कोशिश करें तो पहले के इमरान मसूद समर्थकों में अब काफी इजाफा हो चुका है सिवाय उनके जो किसी भी रूप में केवल बिरादरीवाद की राजनीति करना चाहते हैं।