जान बचाने के चक्कर में खतरे में पड़ रही प्रवासी मजदूरों की जान
कहते हैं कि ईश्वर के आगे किसी की भी नहीं चलती है और फिर भी कहा गया था कि अपनी जान की हिफाजत करना हर व्यक्ति का दायित्व बनता है।लोग भूख से जान बचाने के लिए ही अपना घर परिवार गाँव जिला छोड़कर दूर देश परदेश जाते हैं और अपनी जान हथेली पर रखकर मेहनत मजदूरी करते हैं। इसी तरह कभी कभी जान बचाने के चक्कर में लोगों की जान खतरे में पड़ जाती है और लोग लाख कोशिशों के बावजूद जान को नहीं बचा पाते हैं।इस समय का माहौल कुछ इसी तरह का बन गया है और लोग अपनी जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।कोरोना से जान बचाने के लिए लगाया गया लाकडाउन लोगों को जान को खतरे में डालने में संकोच नहीं पैदा कर पा रहा है क्योंकि लाकडाउन से उनकी जान को खतरा पैदा हो गया है और भूखे मरने की नौबत आ गई है।लाकडाउन के चलते सारे काम धंधे बंद हो गए हैं और पेट की आग बुझाने अपना वतन छोड़कर गये मजदूरों की जान खतरे में पड़ गई है।भूख से जान बचाने के लिए लोगों को भीड़ में जाकर कोरोना की मुसीबत को गले लगाना पड़ रहा है।जब लोग भूख से जान बचाने के लिए अपने घरों से निकले तब वह पूरे तरह स्वस्थ थे लेकिन भीड़ के बीच आने के बाद संक्रमण के शिकार हो गए।इस समय जहाँ लोग जान बचाने के लिए सैकड़ों कोस की पैदल यात्रा अपने बाल बच्चों के साथ कर रहे हैं वहीं तमाम लोग साइकिल रिक्शा आटो एवं ट्रकों में भेड़ बकरी की तरह भरकर आंधी तूफान बरसात धूप भूख की परवाह किए बगैर जान हथेली पर रखकर अपने घर वापस लौट रहे हैं।दूरदराज से वतन वापसी कर रहे तमाम लोग जहाँ जानलेवा कोरोना वायरेश के शिकार हो रहे हैं वहीं रास्ते में दुर्घटना के शिकार होकर अपनी जान को गंवा रहे हैं और तमाम लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं।सरकार इन बेवश मजदूरों को उनके घर वापस भेजने के लिए कोरोना के विस्तार की चिंता को छोड़कर ट्रेनें चला रही हैं और राज्य सरकारें सरकारी बसों को भेज रही है।इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार बराबर लोगों को पैदल या ट्रकों से सफर न कर उन्हें यातायात सुविधा उपलब्ध कराने का आश्वासन दे रही है इसके बावजूद लोग पैदल एवं ट्रक आदि से आना बंद नही कर रहे हैं।लोगों की मनमानी को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने सभी जिलाधिकारियों एवं अधिकारियों को आदेश दिया है कि पैदल आ रहे मजदूरों को रोककर उन्हें भोजन देकर वाहनों से उनके घर भेजने की व्यवस्था करें।इसके बावजूद जिम्मेदार लोगों की गैर जिम्मेदाराना हरकतों के चलते लोगों को पैदल यात्रा करनी पड़ रही है और ट्रकों आदि प्राइवेट वाहनों का सहारा लेना पड़ रहा है फलस्वरूप रास्ते में दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ रहा है और इधर रोजाना दुर्घटनाओं का दौर शुरू हो गया है।सोशल डिस्टेंसिंग खत्म होने से जहाँ घर वापस लौट रहे लोगों को संक्रमण का शिकार होना पड़ रहा है और कोरोना को गाँवो में पसारने का अवसर मिल रहा है वहीं लोगों को बेमौत मरना पड़ रहा है।यह सही है कि सरकार घर वापसी के लिए बेताब मजदूरों की हिफाजत के लिए प्रयत्नशील है लेकिन यह भी सही है कि अगर इन मजदूरों को सरकारी वाहन उपलब्ध हो जाते तो उन्हें पैदल साइकिल या ट्रकों में भरकर वापस न लौटना पड़ता।रातदिन वापस लौट रहे लोगों की भीड़ इस बात का प्रमाण है कि सरकारी प्रयासों में कहीं न कहीं खामी जरूर है और लोग सरकार की अपील को नजरअंदाज करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।सरकार द्वारा लोगों की जान की हिफाजत के लिए ट्रकों पर सवारी लाने पर रोक लगा दी गई है इसके बावजूद ट्रको पर लोगों के आने का सिलसिला जारी रहना भी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।
भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार