कोरोना की महामारी.छूटती नौकरियां और ठप्प पड़े रोज़गार और कारोबार के बीच रमज़ान और ईद पर हिकमत ए अमली-
.....✍️वरिष्ठ पत्रकार फैसल खान की अपील
कोरोना के चलते जहां पूरी दुनिया मे अफरातफरी का माहौल है वहीं लॉक डाउन के चलते तमाम कारोबार बंद हैं दुकानें बाज़ार बन्द है वहीं लाखों लोगो को ये कन्फ़र्म नही की लोक डाउन के बाद उनकी नौकरियां सलामत रहेंगी भी या नही,ख़ास तौर पर मुसलमानों में वैसे भी नौकरी पेशा लोग बहुत ज़्यादा नही हैं और अपना काम चाहे वो दुकान हो या कोई और रोज़गार हो वो तक़रीबन बन्द हैं तो जाहिर बात है ऐसे में कमाई का कहीं से कोई सिलसिला नही और खर्चे लगातार जारी हैं,मैं लगातार लिख रहा हूँ कि लोक डाउन के खत्म होने तक ये तय कर लीजिए कि हमको खाने के लिए नही जीना है बल्कि जीने के लिए ही खाना है,जीभ का जायका कुछ दिन के लिए कतई तौर पर भूल जाना है और घरों में ये नियम बना लीजिए कि ज़रूरत के मुताबिक़ ही खाना बने न कि जायके और चटखारों के मुताबिक़, ये लॉक डाउन कब तलक चलेगा वो तो बाद कि बात है लॉक डाउन के बाद कितने लंबे वक्त में पैसों की आमद शुरू होगी या आर्थिक हालात सही होंगे ये बहुत अहम और सोचने की बात है,दुनिया के कई अमीर तरीन मुल्कों तक से ऐसी खबरें आई है कि लोग पैसे खत्म होने की वजह से अपनी कार बाइक और घरेलू सामान तक बेच रहे हैं तो समझ लेना चाहिए कि हमको हर हाल में फिजूलखर्ची से बाज़ रहना है और कसम खा लेनी है कि किसी भी हाल में फिजूलखर्ची नही करनी है,
हर साल रमज़ान के महीने में मुसलमान दिल खोल कर खर्च करता है ईद पर भी बहुत खर्चा करता है मगर अबकी बार शायद अल्लाह की मर्ज़ी ऐसी नही है कि दिल खोलकर खर्चे किये जायें इसको हिकमत ए अमली कहा जाता है और अबकी बार हमारी हिकमत ए अमली यही होनी चाहिए कि रमज़ान और ईद पर बिल्कुल भी पैसा खर्च नही करना है सिर्फ ज़रूरत भर ही खर्च करना है,हर साल रमज़ान में साल भर के लिए कपड़े जूते खरीदे जाते थे बाइक और कारें खरीदी जाती थी मगर अबकी बार न तो नए कपड़े बनाने हैं और न ही जूते खरीदने हैं,घर के तमाम अफ़राद खास तौर पर औरतों और बच्चों को तमाम हालात से आगाह करते हुवे उनको समझाना है कि हालात सही होते ही नए कपड़े नए जूते भी ज़रूर खरीदे जाएंगे,गांव की एक कहावत है की एक बेटे ने बाप को कहा कि सवा रुपये में हाथी मिल रहा है ले लीजिए तो बाप ने कहा महंगा है नही लेंगे,उसके बाद घर के हालात जब सही हुवे तो उसी बाप ने उसी हाथी को एक लाख में खरीदा और सस्ता बताया,कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि पूरी दुनिया के हालात देखकर यही महसूस हो रहा है कि हालात सुधरने में लंबा वक्त लग सकता है,मालूम नही हममें से कितनो की नौकरियां जाएंगी कितनो के काम धंदे खत्म हो जाएंगे तो ऐसे नाजुक हालात में फिजूलखर्ची का कोई मतलब ही नही बैठता,
लॉक डाउन के दौरान हिन्दू भाइयों और सिख भाइयों के भी त्योहार आये मगर शिक्षित क़ौम होने की वजह से उन्होंने न फालतू खर्च किया और न ही घरों से बाहर निकलकर त्यौहार मनाए मगर हमारी मुस्लिम क़ौम में तालीम की कमी होने की वजह से सबको समझाया जाना बेहद ज़रूरी है उनको आगे आने वाले आर्थिक तंगी के दौर से मोहतात कराया जाना बेहद अहम है उनके ज़हनों में ये बात बिठाई जानी बहुत ज़रूरी है कि अबकी बार रमज़ान और ईद पर किसी भी किस्म की न तो खरीदारी करनी है और न फिजूलखर्ची करनी है,अगर हम क़ौम को ये बात समझाने में कामयाब हो गए तो इसका फ़ायदा भी सबको बाद में नज़र आएगा इंशाल्लाह,और आखिर में फिर वही बात कहूंगा कि घरों में रहें शासन प्रशासन के निर्देशों का सख्ती से पालन करें,घरों में रहकर नमाज़ रोज़ा तरावीह अदा करें और अल्लाह से अपने मुल्क और तमाम इंसानियत के लिए दुआ करें।